Friday, 27 September 2024

जलप्रलय..भिवंडी

साल २००२ की बात है,मैं भिवंडी में कपड़ा कंपनी विनायक डाईंग में काम करता था|
रोज की तरह सुबह में 9:00 बजे काम पर गया और आधे घंटे बाद 9:30 बजे के करीब चाय पीने के लिए कंपनी से दो-चार मिनट की दूरी पर एक होटल में चाय पीने गया|
मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था,
अलग है सा कुछ भी ना था उस दिन सब कुछ सरल था,गाड़ियों की यातायात भी चल रही थी|बारिश भी नहीं हो रही थी जब की मौसम बरसात का था|
जब हम चाय पीने होटल में बैठे तब,होटल जो की कामवारी नदी के किनारे में नदीनाका इलाके में था| हम चाय पी रहे थे तभी अचानक होटल में हमारे पैर के नीचे हमें पानी नजर आया| हम हैरान परेशान पानी कहां से आया बारिश तो नहीं हो रही थी फिर बाहर नजर डाली तो गाड़ी अभी सामान्य रूप से चल रही थी|
पानी बढ़ता ही जा रहा था इसलिए हम लोग होटल के बाहर आए देखा तो बाहर पानी पानी दिख रहा था|सब हैरान-परेशान क्योंकि यह घटना घट रही थी वह महामार्ग था,हम होटल के बाहर आकर देखे तो बाजू में जो नदी थी उसमें पानी का बहाव कुछ ज्यादा ही दिख रहा था|
और तो और पानी भी नदी के बाहर आ रहा था कुछ ही पलों में पानी घुटनों तक पहुंच गया और फिर चारों और भगदड़ मच गई,
हर कोई अपना सामान अपनी चीजें बचाने के चक्कर में लगे थे,और पानी बहता ही जा रहा था| मेरे साथ जो लड़का था वो रास्ता पार करके सामने वाले की दुकान में गया वहां उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे|
जिनकी सहायता करने गया उनकी दुकान सड़क से तीन चार फीट ऊपर थी फिर भी उन्हें डर लग रहा,
डर तो मुझे भी लगा था और नदी के ऊपर का नजारा देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे|
पुल के ऊपर कि सारी गाड़ियां थोड़ी-थोड़ी आहिस्ता आहिस्ता करके पीछे-पीछे आ रही थी क्योंकि पानी अभी कुछ ही मिनटों में पुल के ऊपर से गुजरने वाला था|
आगे की गाड़ियां तेजी से आगे चली गई पुल के ऊपर की गाड़ियां धीरे-धीरे पीछे गांव में बढ़ने लगी थी,यह मंजर देखते देखते ही पता नहीं चल रहा था कि पानी घुटनों के ऊपर से कमर तक कब आया| मैं क्या करूं क्या नहीं मेरे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,एक तो अचानक आई बाढ़ से कैसे बचे,सारे गांव वाले हैरान मैं भी आप डरा हुआ था मैंने पीछे कंपनी की तरफ देखा तो वहां भी पानी जमा हुआ था और तो और गाड़ियां नदी के पुल के ऊपर से होते हुए हमारे कंपनी तक जा चुकी थी|
मुझे ऐसा लगा कि मुझे अगर बचना है तो सामने वाले गन्ने वाले की दुकान में जाकर रुकना पड़ेगा, यह सोचकर मैं रास्ता पार करने लगा पानी कमर तक पहुंचा था रास्ता पार करते वक्त उस दुकानदार ने जो जान बचाने के लिए वहां पर गया था उसके साथ जोर से आवाज लगाइ,
यहां मत आओ पीछे जाओ अपने कंपनी में,अब क्या करूं मैं समझ में नहीं आ रहा था आप तो सामने का नदी का पुल भी नहीं दिख रहा था खाली पुल पर खड़ी दो तीन कंटेनर दिख रहे थे|
मैं पीछे कंपनी में वापस जाने के लिए मुड़ा तब तक  कमर के ऊपर तक पानी आया था|
मैं जैसे तैसे पानी से रास्ता बनाते बनाते जा रहा था तभी थोड़ी सी रिमझिम बारिश शुरू हुई थी और तब अचानक सामने सांप को देखा, वो तो अच्छा हुआ के पानी के बहाव से वो दूसरी और गया था|
मैं कंपनी के गेट तक पहुंचा कंपनी का गेट बंद था क्योंकि कंपनी में पानी घुसा था| गेट के बगल में सिक्योरिटी के लिए केबिन बनाई गई थी,केबिन में पानी जमा हुआ था,मुझे वहा आते देख कई लोगों ने जो कंपनी के दूसरे माले पर थे,चिल्ला रहे थे मेहता जी गांव की तरफ जाओ गेट नहीं खुलेगा या अंदर में पानी भरा हुआ है|लेकिन पता नहीं मेरे मन में क्या विचार है जो भी होगा कंपनी में होगा|
कंपनी का गेट एक जगह पर सड़ा हुआ था फटा हुआ था और सिक्योरिटी केबिन के बाजू में वह हिस्सा था| मुझे वह याद था इसलिए मैं पानी में से रास्ता निकालते हुए वहां तक गया और उस फटे हुए जगह पर अपना पैर फसाया और केबिन पर चढ़ गया|केबिन पर चढ़कर देखा तो अंदर में पानी भरा हुआ था और पानी में सिलेंडर के खाली बांटलें और प्लास्टिक के कैन बह रहे थे|
मैंने पानी में बहते हुए सिलिंडर के बाटले पर पैर रखना चाहा लेकिन वह बाटला फिसल रहा था| दिमाग काम नहीं कर रहा था ऊपर से अंदर लोगों के आवाज इधर कायको आ रहे हो मेहता जी गांव की तरफ जाओ|
लेकिन अब जब पहुंचा हूं कंपनी में तो अंदर कैसे जाऊंगा लेकिन पता नहीं कैसे मैं दो कदम पीछे मुड़ा और जोर से आगे कूदा पानी में,वहीं पर जो पानी के बगल में है कुछ लड़के थे उन्होंने मुझे खींच लिया,
फिर दो चार मिनट में हम लोग पीछे पीछे होते हुए तीसरे माले पर जाने लगे लेकिन जब दूसरे माले पर पहुंचे खिड़की में देखा तो कुछ भी दिख नहीं रहा था सिर्फ पानी पानी चारों ओर और कुछ नहीं दिख रहा था|
पानी में डूबा यह गांव देखकर यकीन नहीं हो रहा था के अभी 10 मिनट पहले मैं वहीं पर चाय पी रहा था अब क्या करें कैसे यहां से निकले इस सोच में सब थे तो मैंने कहा चलो पिछले हिस्से से बाहर निकले वह भी एक साथ एक चैन बनाकर चले एक दूजे का हाथ पकड़ कर चले|
तो हम लोगों ने एक रस्सी ली और उसे पकड़ कर चलने की ठान ली|और जहा से जाना था वहा रास्ते में एसिड की भी टंकी आती थी,तो जिनको पता था किस किस जगह पर है उन लोगों को आगे रहने के लिए कहा और बाकी सब उनके पीछे पीछे,इस तरह से हम फिर नीचे आए और नीचे उतरने के बाद एक साथ में पकड़े हुए रस्सी को पकड़ते हुए रास्ते से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे|
जिनको पता था वह आगे थे कंपनी के पीछे वाले हिस्से में खेत खलियान थे उसी के कीचड़ में से हम लोग सब एक दूजे का सहारा बनते हुए बाहर निकल रहे थे|बाहर निकलने के बाद जब मुख्य सड़क पर आए तो सामने कुछ भी नहीं दिख रहा था और वह देख कर यकीन नहीं हो रहा था कि 10 मिनट पहले यहां पर यातायात थी गाड़ियां चल रही थी|
और तभी रिमझिम रिमझिम बारिश शुरू हुई थी उस टाइम पर ना तो ज्यादा मोबाइल थे और ना ही टीवी न्यूज़ चैनल ज्यादा थे|
अब क्या करें इस सोच में मैं,क्योंकि सब घर में परेशान होंगे तभी कुछ मजदूरों ने मुझे कहा मेहता जी चलो हमारे साथ रहो,तो उस तरह उस शेलार गांव में मैं मजदूरों के साथ था,वैसे तो रात भर सोया नहीं घर वालों का क्या हाल हो रहा होगा इस सोच में पूरी रात जाग रहा था|
आखिरकार सुबह हुई सुबह 6:00 बजे मैं घर वापस आने के लिए निकला जब रास्ते पर से बाहर आया कंपनी की ओर देखा तो कंपनी के गेट में पूरा कीचड़ लगा हुआ था पेड़ पौधे फंसे हुए थे|
तभी सामने से मुझे ढूंढते हुए आ रहे मेरे पापा से मैं मिला और घर की ओर निकला,और जब नदी नाके पर पहुंचा देखा तो सब घर पूरी तरह पानी में बह गए थे,रास्ते में सिर्फ दुर्गंध थी सड़ा हुआ अनाज और मरे हुई जानवर दिखाई दे रहे थे
इन सब से रास्ता निकालते हुए नदी के पुल तक आया पुल टूटा हुआ था थोड़ा सा जो हिस्सा बचा था वहा से रास्ता बनाते हुए घर तक पहुंचा|
और जब घर पर पहुंचा तो सब पड़ोस वाले मेरे घर पर ही मेरा इंतजार कर रहे थे मां रात भर रो रही थी सब रात भर जागे थे कोई सोया नहीं था और सब मेरा इंतजार कर रहे थे|

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