Friday, 27 September 2024

#सिनेमा...पूर्वीचा

सिनेमा नाव ज्याला माहिती नाही अशी व्यक्ती मिळणे खूपच कठीण त्यातही सिनेमा न पाहिलेला व्यक्ती मिळणे ही तितकेच कठीण.
सिनेमा कित्येक व्यक्तींचा आवडता विषय..माझा ही...
माझा जरा जास्तच आवडता कारण मी दर आठवड्याला सिनेमा बघायचो,माझ्या आयुष्यात त्या वेळेस एक ही आठवडा असा गेला नसेल की मी त्या आठवड्यात सिनेमा बघितला नसेल.
कधी कधी तर एकच सिनेमा एकाच दिवशी दोन दोन वेळेस ही बघितला आहे.
मी 10 वी इयत्तेत असताना म्हणजेच 92/93 व्या वर्षी,मी किती सिनेमे बघितले आणि कोणकोणते बघितले ह्याची नोंद केलेली एक वही आजही माझ्याकडे आहे.
त्या वहीत मी 11 महिन्यात 46 सिनेमे बघितले असल्याची नोंद आहे आणि महत्त्वाचे म्हणजे 30 च्या आसपास "अमिताभ बच्चन" चे सिनेमे आहेत.
पण गेल्या वीसेक वर्षा पासून मी सिनेमा बघणे बंद केले आहे.
कारण जी मजा सिंगल स्क्रीन थिएटर ला होती ती मला मल्टिप्लेक्स ला नाही येत.एक तर 5/10 रुपयांनी सिनेमे बघितलेला व्यक्ती 150/200 देऊन सिनेमा बघणारा मी नाही.
जी मजा गोंधळ घालून, सिट्ट्या वाजवून,ब्लॅक नी तिकीट घेऊन सिनेमा बघण्यात होती ती मजा आता नाही राहिलेली.
मला वाटतं गेल्या 10/15 वर्षात मी जेमतेम 7/8 सिनेमे बघितले असतील ते सुद्धा बहुतेक मराठी च.
अमिताभ बच्चनने केलेले "लाल बादशाह" "सुर्यवंशम" "बडे मियां छोटे मियां" सिनेमे बघितले तेव्हाच मी सिनेमा बघणे सोडून देण्याचा विचार केला,तरीही "अमिताभ" हा विषयच असा आहे की सुटता सुटत नाही न राहून "आंखे" "खाकी" सारख्या सिनेमांनी मला अमिताभ का बघण्याची ओढ काही कमी केली नाही.
असो,मला तर ती मजा आता कुठेच दिसत नाही जी मजा advance booking करून सिनेमा बघण्यात होती,सोमवारी बुकींग करून शुक्रवार पर्यंत ती तिकीट सांभाळून ठेवण्यात जी होती.
अमिताभ चा सिनेमा म्हटलं की मी कल्याण,उल्हासनगर,ठाणे इथे ही जायचो,अमिताभ च्या मारामारी सिनेमां सोबत काही सिनेमे असे ही होते ज्या सिनेमा मध्ये नावाकरिता ही मारधाड नव्हती तरीही ते सिनेमे सुद्धा मी एकदा नाही तर अनेकदा बघितलेत जसे "साजन" "आशिकी" "चांदनी".
"साजन" सिनेमा तर सर्वात पहिले मी व्हिडिओ वर बघितला होता आणि तो इतका आवडला की त्या नंतर जेव्हा जेव्हा तो सिनेमा कुठल्या थिएटर ला लागला तेव्हा तेव्हा मी बघितला.पूर्वी कुठलाही सिनेमा असो एकदा थिएटर मधून निघाला की पुन्हा दोन/चार महिन्यांत कुठे तरी लागायचा,आता मात्र एक सिनेमा एकदाच लागतो परत कुठे लागलेला दिसत नाही.
त्या वेळेस 100 रुपयात VCR भाड्याने मिळत असतं ज्यावर 4 सिनेमे बघायला मिळायचे आमच्या समोर जे कुटुंब राहत होते ते महिन्यातून एकदा तरी VCR भाड्याने मागवायचे,टीव्ही त्यांच्या घरी होतो.
आमच्या भिवंडी मध्ये 10 ते 12 सिनेमा हॉल होते त्यातला एक ही सिनेमा हॉल असा नसेल जिथे मी सिनेमा बघितला नसेल.
"भिवंडी टॉकीज" असो किंवा "नझराणा" ह्या दोन्ही ठिकाणी पिक्चर ला जाताना मी निजामपूर मधून शॉर्ट कट नी चालत जायचो.
तसेच "पायल" "झंकार" ला जाताना "कमला" हॉटेल किंवा "सिटिझन" हॉस्पिटल जवळून शॉर्टकट मारायचो,"रतन" टॉकीज ला मात्र रिक्षा ने जायला लागायचे.
"अप्सरा" "भारत" जाताना आमच्या इथून चव्हाण कॉलनी मधून IGM हॉस्पिटल जवळून गल्ली धरून "आनंद" थिएटर च्या बाजूने जायला लागायचे.
बाकी "गलॅक्सी" "डायमंड प्लाझा" "हसीन" "फरहान" "सिनेमेज" "सिनेगोल्ड" घरा जवळच होते तिथे जायला 5 मिनिटे खुप व्हायचे.
"गलॅक्सी" क्या ओपनिंग ला तर "विनोद खन्ना" आला होता आणि पहिलाच सिनेमा "महादेव" लागला होता ज्याचा हिरो विनोद खन्ना होता.
"सीनेगोल्ड" ला तर प्रीमियर होता "चिमणी पाखरे" नावाच्या मराठी सिनेमाचा त्या वेळेस लक्ष्मीकांत बेर्डे आणि पद्मिनी कोल्हापुरे ला बघायला तुफान गर्दी जमली होती.
आज भिवंडीतील बहुतेक सिनेमा हॉल बंद झाले आहेत, दक्षिणात्य सिनेमांसाठी असलेले "गणेश" आणि "आशिष" थिएटर ही बंद झालेत.
भिवंडीतील प्रत्येक गोष्ट थोडी वेगळी आहे,पूर्णतः मोडकळीस आलेल्या "आनंद" टॉकीज ला नवे जीवदान मिळाले ते "जुरासिक पार्क" सिनेमाने हा सिनेमा त्या थिएटर ला 20 आठवडे तरी चालला होता,
तसेच "गलॅक्सी" ह्या थिएटर ला कितीही हाऊसफुल्ल असलेला सिनेमा कधी दुसरा आठवडा चालवत नव्हता त्याने "सिर्फ तुम" आणि "छुपा रुस्तम " ला 20/25 आठवडे चालवला,"रोजा" ही चांगलाच चालवला होता सर्वात आश्चर्य म्हणजे मराठी सिनेमा "बिनधास्त" 17 आठवडे चालवला महत्त्वाचे म्हणजे ह्या मराठी सिनेमात एकही नायक नव्हता सर्व फक्त हिरॉईन होत्या.
"सिनेगोल्ड" ला "मोहब्बतें" 60 आठवडे चालला तर "फरहान" ला "राजा" 35 आठवडे चालला होता.
असो मुख्य विषय हा की इतकी माहिती मी का ठेवायचो कारण जितकी अभ्यासाची पुस्तके मी वाचायचो तितकेच सिनेमा विषयक पुस्तके ही वाचायचो."मायापुरी" "चंदेरी" "फिल्मसिटी" असे अनेक पुस्तके दर आठवड्याला मी घ्यायचो.
पूर्वी सिनेमांचे पोस्टर बघायला ही खुप छान वाटायचं शुक्रवारी सकाळी उठलो की पहिले ST स्टँड वर जायचो तिथे सर्व सिनेमांचे पोस्टर लागायचे कुठल्या टॉकीज ला कुठला सिनेमा लागला हे कळायचं तसे ते पेपर मध्ये ही जाहिराती असायच्या पण कधी कधी त्या चुकीच्या असायच्या.
हल्लीच्या डिजिटल बॅनर पेक्षा तेव्हाचे हाताने रंगवलेले सिनेमांचे बॅनर लाजवाब होते.
तसे पाहता सिनेमावर लिहिणे विषय खुप मोठा आहे पण आता कंटाळा आल्यामुळे अवरते घेतो.तरीही जाता जाता एक किस्सा अजून सांगतो.
आमच्या इथे सिंधी चे दुकान होते,ज्या दुकानात आमची उधारी चालायची तो सिंधी व्यक्ती दुकान वाला उल्हासनगर मधून यायचा त्याला ही सिनेमांचे भरपूर वेड होते त्याच्या दुकानात ही तो सिनेमांचे पुस्तके ठेवायचा आणि शब्दकोडी सोडवताना माझी मदत घ्यायचा शब्दकोडी साधारण नाही फक्त सिनेमा ची असायची.

जलप्रलय..भिवंडी

साल २००२ की बात है,मैं भिवंडी में कपड़ा कंपनी विनायक डाईंग में काम करता था|
रोज की तरह सुबह में 9:00 बजे काम पर गया और आधे घंटे बाद 9:30 बजे के करीब चाय पीने के लिए कंपनी से दो-चार मिनट की दूरी पर एक होटल में चाय पीने गया|
मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था,
अलग है सा कुछ भी ना था उस दिन सब कुछ सरल था,गाड़ियों की यातायात भी चल रही थी|बारिश भी नहीं हो रही थी जब की मौसम बरसात का था|
जब हम चाय पीने होटल में बैठे तब,होटल जो की कामवारी नदी के किनारे में नदीनाका इलाके में था| हम चाय पी रहे थे तभी अचानक होटल में हमारे पैर के नीचे हमें पानी नजर आया| हम हैरान परेशान पानी कहां से आया बारिश तो नहीं हो रही थी फिर बाहर नजर डाली तो गाड़ी अभी सामान्य रूप से चल रही थी|
पानी बढ़ता ही जा रहा था इसलिए हम लोग होटल के बाहर आए देखा तो बाहर पानी पानी दिख रहा था|सब हैरान-परेशान क्योंकि यह घटना घट रही थी वह महामार्ग था,हम होटल के बाहर आकर देखे तो बाजू में जो नदी थी उसमें पानी का बहाव कुछ ज्यादा ही दिख रहा था|
और तो और पानी भी नदी के बाहर आ रहा था कुछ ही पलों में पानी घुटनों तक पहुंच गया और फिर चारों और भगदड़ मच गई,
हर कोई अपना सामान अपनी चीजें बचाने के चक्कर में लगे थे,और पानी बहता ही जा रहा था| मेरे साथ जो लड़का था वो रास्ता पार करके सामने वाले की दुकान में गया वहां उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे|
जिनकी सहायता करने गया उनकी दुकान सड़क से तीन चार फीट ऊपर थी फिर भी उन्हें डर लग रहा,
डर तो मुझे भी लगा था और नदी के ऊपर का नजारा देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे|
पुल के ऊपर कि सारी गाड़ियां थोड़ी-थोड़ी आहिस्ता आहिस्ता करके पीछे-पीछे आ रही थी क्योंकि पानी अभी कुछ ही मिनटों में पुल के ऊपर से गुजरने वाला था|
आगे की गाड़ियां तेजी से आगे चली गई पुल के ऊपर की गाड़ियां धीरे-धीरे पीछे गांव में बढ़ने लगी थी,यह मंजर देखते देखते ही पता नहीं चल रहा था कि पानी घुटनों के ऊपर से कमर तक कब आया| मैं क्या करूं क्या नहीं मेरे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था,एक तो अचानक आई बाढ़ से कैसे बचे,सारे गांव वाले हैरान मैं भी आप डरा हुआ था मैंने पीछे कंपनी की तरफ देखा तो वहां भी पानी जमा हुआ था और तो और गाड़ियां नदी के पुल के ऊपर से होते हुए हमारे कंपनी तक जा चुकी थी|
मुझे ऐसा लगा कि मुझे अगर बचना है तो सामने वाले गन्ने वाले की दुकान में जाकर रुकना पड़ेगा, यह सोचकर मैं रास्ता पार करने लगा पानी कमर तक पहुंचा था रास्ता पार करते वक्त उस दुकानदार ने जो जान बचाने के लिए वहां पर गया था उसके साथ जोर से आवाज लगाइ,
यहां मत आओ पीछे जाओ अपने कंपनी में,अब क्या करूं मैं समझ में नहीं आ रहा था आप तो सामने का नदी का पुल भी नहीं दिख रहा था खाली पुल पर खड़ी दो तीन कंटेनर दिख रहे थे|
मैं पीछे कंपनी में वापस जाने के लिए मुड़ा तब तक  कमर के ऊपर तक पानी आया था|
मैं जैसे तैसे पानी से रास्ता बनाते बनाते जा रहा था तभी थोड़ी सी रिमझिम बारिश शुरू हुई थी और तब अचानक सामने सांप को देखा, वो तो अच्छा हुआ के पानी के बहाव से वो दूसरी और गया था|
मैं कंपनी के गेट तक पहुंचा कंपनी का गेट बंद था क्योंकि कंपनी में पानी घुसा था| गेट के बगल में सिक्योरिटी के लिए केबिन बनाई गई थी,केबिन में पानी जमा हुआ था,मुझे वहा आते देख कई लोगों ने जो कंपनी के दूसरे माले पर थे,चिल्ला रहे थे मेहता जी गांव की तरफ जाओ गेट नहीं खुलेगा या अंदर में पानी भरा हुआ है|लेकिन पता नहीं मेरे मन में क्या विचार है जो भी होगा कंपनी में होगा|
कंपनी का गेट एक जगह पर सड़ा हुआ था फटा हुआ था और सिक्योरिटी केबिन के बाजू में वह हिस्सा था| मुझे वह याद था इसलिए मैं पानी में से रास्ता निकालते हुए वहां तक गया और उस फटे हुए जगह पर अपना पैर फसाया और केबिन पर चढ़ गया|केबिन पर चढ़कर देखा तो अंदर में पानी भरा हुआ था और पानी में सिलेंडर के खाली बांटलें और प्लास्टिक के कैन बह रहे थे|
मैंने पानी में बहते हुए सिलिंडर के बाटले पर पैर रखना चाहा लेकिन वह बाटला फिसल रहा था| दिमाग काम नहीं कर रहा था ऊपर से अंदर लोगों के आवाज इधर कायको आ रहे हो मेहता जी गांव की तरफ जाओ|
लेकिन अब जब पहुंचा हूं कंपनी में तो अंदर कैसे जाऊंगा लेकिन पता नहीं कैसे मैं दो कदम पीछे मुड़ा और जोर से आगे कूदा पानी में,वहीं पर जो पानी के बगल में है कुछ लड़के थे उन्होंने मुझे खींच लिया,
फिर दो चार मिनट में हम लोग पीछे पीछे होते हुए तीसरे माले पर जाने लगे लेकिन जब दूसरे माले पर पहुंचे खिड़की में देखा तो कुछ भी दिख नहीं रहा था सिर्फ पानी पानी चारों ओर और कुछ नहीं दिख रहा था|
पानी में डूबा यह गांव देखकर यकीन नहीं हो रहा था के अभी 10 मिनट पहले मैं वहीं पर चाय पी रहा था अब क्या करें कैसे यहां से निकले इस सोच में सब थे तो मैंने कहा चलो पिछले हिस्से से बाहर निकले वह भी एक साथ एक चैन बनाकर चले एक दूजे का हाथ पकड़ कर चले|
तो हम लोगों ने एक रस्सी ली और उसे पकड़ कर चलने की ठान ली|और जहा से जाना था वहा रास्ते में एसिड की भी टंकी आती थी,तो जिनको पता था किस किस जगह पर है उन लोगों को आगे रहने के लिए कहा और बाकी सब उनके पीछे पीछे,इस तरह से हम फिर नीचे आए और नीचे उतरने के बाद एक साथ में पकड़े हुए रस्सी को पकड़ते हुए रास्ते से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे|
जिनको पता था वह आगे थे कंपनी के पीछे वाले हिस्से में खेत खलियान थे उसी के कीचड़ में से हम लोग सब एक दूजे का सहारा बनते हुए बाहर निकल रहे थे|बाहर निकलने के बाद जब मुख्य सड़क पर आए तो सामने कुछ भी नहीं दिख रहा था और वह देख कर यकीन नहीं हो रहा था कि 10 मिनट पहले यहां पर यातायात थी गाड़ियां चल रही थी|
और तभी रिमझिम रिमझिम बारिश शुरू हुई थी उस टाइम पर ना तो ज्यादा मोबाइल थे और ना ही टीवी न्यूज़ चैनल ज्यादा थे|
अब क्या करें इस सोच में मैं,क्योंकि सब घर में परेशान होंगे तभी कुछ मजदूरों ने मुझे कहा मेहता जी चलो हमारे साथ रहो,तो उस तरह उस शेलार गांव में मैं मजदूरों के साथ था,वैसे तो रात भर सोया नहीं घर वालों का क्या हाल हो रहा होगा इस सोच में पूरी रात जाग रहा था|
आखिरकार सुबह हुई सुबह 6:00 बजे मैं घर वापस आने के लिए निकला जब रास्ते पर से बाहर आया कंपनी की ओर देखा तो कंपनी के गेट में पूरा कीचड़ लगा हुआ था पेड़ पौधे फंसे हुए थे|
तभी सामने से मुझे ढूंढते हुए आ रहे मेरे पापा से मैं मिला और घर की ओर निकला,और जब नदी नाके पर पहुंचा देखा तो सब घर पूरी तरह पानी में बह गए थे,रास्ते में सिर्फ दुर्गंध थी सड़ा हुआ अनाज और मरे हुई जानवर दिखाई दे रहे थे
इन सब से रास्ता निकालते हुए नदी के पुल तक आया पुल टूटा हुआ था थोड़ा सा जो हिस्सा बचा था वहा से रास्ता बनाते हुए घर तक पहुंचा|
और जब घर पर पहुंचा तो सब पड़ोस वाले मेरे घर पर ही मेरा इंतजार कर रहे थे मां रात भर रो रही थी सब रात भर जागे थे कोई सोया नहीं था और सब मेरा इंतजार कर रहे थे|

Saturday, 9 September 2023

शाळेतल्या आठवणी

जुन्या आठवणीना, पुना एकदा उजाळा मिळाला.
३० वर्षानंतर जेव्हा,पुन्हा एकदा भेट दिली शाळेला.

औचित्य साधले गेले होते, शिक्षक दिनाचे.
वर्गात बसता शाळेच्या,आठवणीत साऱ्यांचे डोळे पाणविले.

आले मन भरून जेव्हा, काहींनी से शब्दात मांडले.
शब्द फुटेना ज्यांच्या तोंडून, त्यांच्या डोळ्यात जाणिले.

तेच मित्र, त्याच मैत्रिणी पुन्हा एकदा नुसता कल्ला माजला होता.
नव्हते जे हजर ह्या कार्यक्रमात,त्यांच्या मात्र उणिवा जाणवत होत्या.

होती जरी इमारत नवी, वर्ग हि जरी नवीन होते.
तरीही चाळ सदृश्य शाळेतच, सतत आमचे लक्ष जात होते.

आपला
योगेश आ. आंबावले

Monday, 4 September 2023

कायमची आठवण

नाही विसरू शकत
इयत्ता सातवी ला असतानाची घटना आम्हाला इंग्लिश विषयाच्या पुस्तकात rupas great escape नावाचा धडा होता .
तर त्या धडा मध्ये शेवटला एक प्रश्न होता त्या प्रश्नाचे उत्तर काही केल्या माझ्याने पाठ होत नव्हते.
तीन चार दिवस झाले तरी उत्तर पाठ होत नव्हते शेवटी काय आमच्या निकम सरांनी जे इंग्लिश शिकवायला होते माझ्या पोटावर जो काही चिमटा घेतला ( बाप रे बाप ) अजुन विसरलो नाही, आत्ता हि आठवलं तरी कळ मारते.
पण एक मात्र नक्की त्या चिमट्यामुळे जो प्रश्न आणि त्याचे उत्तर मला तीन चार दिवस प्रयत्न करूनही पाठ होत नव्हते ते आज ३० वर्षा नंतर हि पाठ आहे.
हि घटना 89-90 ची आहे .
प्रश्न : what was rupa found of ?
उत्तर : rupa was fond of reading adventure stories and telling then to her friends.

माझी शाळा

मला आज ही आठवतो तो शाळेचा पहिला दिवस,
१ली इयत्तेपासून १० वि इयत्तेपर्यंत मला नेहमी सकाळचीच शाळा असायची,
घरापासून साधारण १५/२० मिनिटाच्याआत मी शाळेत पोहोचायचो,तसा शाळेत मी एकटा कधी गेलोच नाही,नेहमी दादा (वडील) सोडायला यायचे,
त्या वेळेस इतक्या प्रमाणत गाड्या नव्हत्या जितक्यायाआज आहेत,मस्त रस्त्यांनी चालत मजा करत जायचो.
आमची शाळा म्हणजे एक चाळ होती,एक ऑफिस आणि तीन वर्ग,शाळेची चावी शाळेला लागून असलेल्या चाळीत एका काकांकडे राहायची.
मला सर्वात अगोदर शाळेत पोहोचायचे सवय होती त्यामुळे शाळेत पोहोचल्यावर त्या काकांकडून चावी घेऊन वर्ग मीच उघडायचो.
शाळेच्या पहिल्या दिवशी तर खूप वेगळाच आनंद यायचा नवीन मित्र क्वचितच असायचे, सर्व जुने मित्रच पास होऊन नवीन वर्गात यायचे,
वर्ग उघडल्यावर सर्व फळ्यावर स्वागत किंवा सुविचार लिहायची जबाबदारी माझी असायची,वर्ग उघडून झाल्यावर ऑफिस साफ करायचा बहाणा करून मी ऑफिस मध्ये सकाळ पेपर यायचा तो वाचायचो आणि शब्द कोडे सोडावयचो कारण गुरुजी येण्यास २० मिनिटे तरी लागायची.
खूप लिहायला आहे पण पाहिजे तितके आठवत नाही.
राहून फक्त एकच गोष्ट सांगता येते,
माझी शाळा मला खूप आवडायची आज ही आवडते
आज ही १५ ऑगस्ट मी न चुकता माझ्या शाळेत जातो.
शाळा सोडून आज ३० वर्षे झाली पण त्या वेळेस चे काही वर्गमित्र आज ही सोबत आहेत
अधून-मधून आम्ही भेटतो सुध्दा,
खूप आनंद होतो.

माझ्या वर्गातली

माझ्या वर्गातली ती मला आजही खूप आठवते आहे,
इतक्या वर्षानंतरही स्वप्नात येऊन सतावते आहे.
रागीट स्वभावाची ती कुणावरही लगेच भडकायची,
पण माझ्याशी मात्र नेहमी नरम स्वभावाने वागायची.
मधल्या सुट्टीत चणे शेंगदाणे खायची,
आणि न चुकता मलाही आणून द्यायची.
समजत नव्हते तेव्हा ती अशी का वागायची,
पण मला मात्र ती खूप आवडायची.
मारली जरी कधी सुट्टी,गुरुजी नंतर ओरडत असे,
ही मात्र सुट्टी का केली म्हणून माझा जीव घेत असे.
माझ्या बाजूच्या बेंचवर पुढील रांगेत बसायची,
मी पाहायचो तिच्याकडे ती अधून मधून माझ्याकडे बघायची.
विज्ञान विषयात आकृती काढून घेण्यासाठी मला सांगायची,
वार्षिक स्नेहसंमेलनात माझा डान्स पार्टनर होशील म्हणून विचारायची.
सहल निघाली की तू पण चल अशी विनवणी करायची,
तेव्हा काहीच समजत नव्हते ती अशी का वागायची.
माझ्या वर्गातील ती आता कुठे आहे माहीत नाही,
पण तिने जर हे वाचलं तर तिला माझी आठवण आल्याशिवाय राहणार नाही.

इंटरनेटच्या जगात.

इंटरनेटच्या जगात आजच्या काळात कॉम्पुटर,लॅपटॉप किंवा स्मार्टफोन कुणाजवळ नाही असे व्यक्ती शोधूनही सापडणार नाही.
इंटरनेट मुळेच जग आपल्या खूपच जवळ आले आहे,इंटरनेटमुळेच आपण कुठलीही माहिती पाहिजे तितक्या प्रमाणात जमा करू शकतो.
ह्या इंटरनेट मुळेच जगभर पसरलेले आपले नातेवाईक,मित्रमंडळी आपल्या खूपच जवळ आले आहेत,
पूर्वी पत्राने ने जे काम व्हायचे ते काम आता फॅक्स आणि इ मेल मुळे होत आहे.
इंटरनेट चा शिक्षणासाठी खूपच चांगला वापर करता येतो,पण हल्लीच्या मुलांमध्ये इंटरनेट म्हणजे फक्त गेम्स,सिनेमे,संगीत ह्यांचे देवाण घेवाण करण्यासाठीच फक्त वापर करतात.
खरे पाहता आजच्या ह्या इंटरनेटच्या जगात इंटरनेटचा योग्य तो वापर करून विकास साधने अत्यंत गरजेचे आहे,इंटरनेट म्हणजे माहितीचे मायाजाल आहे,जिथे तुम्हाला पाहिजे त्या गोष्टीची इत्यंभूत माहिती मिळते.
इंटरनेट चा सोशल साईट वर सर्वाधिक वापर घातक ही ठरतो,
तुम्हाला जर तुमच्या पोस्ट ला like ,comments पाहिजे तसे न मिळाल्यास तुमची चिडचिड वाढते आणि ती चिडचिड पुढे गंभीर आजारात बदलते,म्हणूनच इंटरनेट चा योग्य तो आणि योग्य प्रमाणात वापर झाला पाहिजे,
इंटरनेटची सुद्धा दोन बाजू आहे आपण कुठली बाजू कशी वापरावी हे आपल्या हातात आहे,
इंटरनेट हे आपल्या जगात आणावे,
आपण इंटरनेटच्या जगात न जावे.